Contents
असहयोग आंदोलन के कारण
रॉलेट एक्ट (1919) –असहयोग आंदोलन
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात जनता को उम्मीद थी कि ब्रिटिश सरकार उनके हितो की रक्षा के लिए कुछ करेगी , परन्तु सरकार ने देश में मार्च ,1919 में रॉलेट एक्ट के नाम से नया कानून लागू कर दिया जिसका उद्देश्य युद्धकालीन प्रतिबंदो को स्थायी बनाना था | इस अधिनियम के अनुसार ब्रिटिश सरकार को किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा चलाए उसे कैद में रखने का अधिकार दिया गया था | जिसके कारण पुरे भारत देश में अशांति फैल गयी , लोगो को केवल संदेह के आधार पर कैद किया जाने लगा |
जलियाँवाला बाग नरसंहार-असहयोग आंदोलन
जैसा की आपने पीछे ही पढ़ा की किस तरह रॉलेट एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार लोगो को कैद कर रही थी इसी कारण लोगों में आक्रोश पैदा होने लगा | इसका विरोध करने की प्रथम घटना जलियाँवाला बाग में हुई (वर्तमान पंजाब )यहाँ लोग रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुए थे | परंतु रॉलेट एक्ट के विरोध के दौरान हुए जलियाँवाला बाग नरसंहार ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की बर्बरता को और अधिक उजागर किया है | दरअसल 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन पंजाब में अपने जनप्रिय नेताओ डॉ सैफुद्दीन किचलू तथा डॉ सत्यपाल की गिरफ़्तारी के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए जलियाँवाला बाग में एक भीड़ इकठ्ठी हुई थी | जब ब्रिटिश सरकार को इसकी खबर मिली तोइसी भीड़ पर अमृतसर के कमांडर जनरल डायर ने बिना को चेतावनी दिए ,चौतरफा (चारों ओर ) गोली चलाने का आदेश दे दिया जिसके कारण हजारों लोग जिनमे बच्चे , बूढ़े ,महिलाएं सब मारे गए | इस घटना का प्रमाण हम आज भी अमृतसर जाकर वहाँ पर मौजूद जलियाँवाला बाग़ की दीवारों पर पड़े गोलियों के निशानों से देख सकते है |इस घटना के बाद पूरा देश उदास होगया रविन्दरनाथ टैगोर तथा महात्मा गाँधी ने अपनी उपाधियों को त्याग दिया |
हंटर समिति की रिपोर्ट-असहयोग आंदोलन
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुई जलियाँवाला बाग नामक घटना देश की जनता में आक्रोश फैल गया ये सब देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने हंटर समिति का गठन किया जिसका काम था जलियाँवाला बाग घटना की जांच करना और रिपोर्ट तैयार करना परंतु हंटर समिति की रिपोर्ट ने भी कोंग्रेसियो में गहरा असंतोष भर दिया क्योकि इसमें जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड जैसे बर्बरता पूर्ण कार्य को सही ठहराया था तथा जनरल डायर को अपराध मुक्त कर दिया गया था |
इन सभी घटनाओं को देखते हुए गाँधी जी ने 1 अगस्त 1920 को लोगों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार को किसी मामले में कोई सहयोग नहीं करना और भारतीयों पर हो रहे अत्याचार तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा लाये गए रोलेट एक्ट जैसे क्रूर कानूनों को खत्म करना इसलिए इस आंदोलन का नाम असहयोग आंदोलन रखा गया | धीरे धीरे इस आंदोलन ने विशाल रूप धारण कर लिया देश का हर एक व्यक्ति किसी न किसी तरह इस आंदोलन से जुड़ गया | बच्चों ने स्कूल व कॉलेज जाना बंद कर दिया वकीलों ने कोर्ट जाना बंद कर दिया | महिलाएं भी एक बड़ी संख्या में इस आंदोलन में जुडी धीरे धीरे इस आंदोलन ने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया सबको विश्वास था की अब हमें ब्रिटिश शासन से मुक्ति मिल जाये गी |
असहयोग आंदोलन की असफलता के कारण
शुरुआत में यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक था परंतु बाद में इसने एक हिंसक रूप ले लिया| 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित चौरी- चौरा नामक स्थान पर लोगो द्वारा एक पुलिस चौकी में आग लगा दी गई जिसके कारण पुलिस चौकी में मौजूद २२ पुलिस वाले जिंदा जलकर मर गए | इस घटना के तुरंत बाद गाँधी जी ने २२ फरवरी 1922 के दिन असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया क्योकि अब गाँधी जी को पता चल गया था की ये आंदोलन सफल नहीं होगा | इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गाँधी जी को 6 साल की सजा सुनाकर जेल में डाल दिया |
इस आंदोलन को समाप्त करने के कारण जनता गाँधी जी से नाराज़ भी हुई |
संबंधित पोस्ट:-
ideological differences between gandhi and ambedkar