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नेहरू रिपोर्ट
भारत के प्रथम देशीय संविधान नेहरू रिपोर्ट का निर्माण साइमन कमीशन के मुद्दे के साथ जुड़ा हुआ है| दरअसल 1928 ई में भारत सचिव बकेनहेड ने भारतीय दलों को चुनौती दी की अगर आप में योग्यता है तो आप सभी की सहमति से एक संविधान प्रस्तुत करे | इसी के अनुसार 1928 ई में कांग्रेस की एक बैठक हुई और मोतीलाल नेहरू की अध्यक्ष्ता में एक समिति क्क गठन हुआ जिसका कार्य भारतीय संविधान का निर्माण करना था |
दिसंबर 1928 ई में कलकत्ता में सर्वदलीय सम्मलेन में नेहरू रिपोर्ट रखी गयी | समे अनेक महत्वपूर्ण प्रावधान थे :-
- नेहरू रिपोर्ट में पहली बात कही गयी की भारत को डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा प्राप्त हो ,जिसकी स्थिति ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत अन्य डोमिनियन राज्यों की तरह हो | इस व्यवस्था में प्रतिरक्षा एवं विदेशी मामले ब्रिटिश शासन के पास तथा आंतरिक मामलों में भारत को स्वायत्तता प्राप्त होनी थी |
- यहाँ डोमिनियन स्टेट्स की चर्चा करते हुए कहा गया था की संविधान में नागरिकता की व्याख्या होनी जरूरी है तथा मौलिक अधिकारों की घोषणा की जानी भी जरूरी है |
- केंद्र की तरह प्रांतो में भी उत्तरदायी सरकार की स्थापना होगी ,जो गवर्नर की कार्येकारिणी परिषद में जुडी होगी राजनितिक संरचना मोठे तौर पर एकात्मक ही थी और अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र को दिए जाने का प्रावधान था |
- नेहरू रिपोर्ट में सिफारिस की गई की साम्प्रदायिक चुनाव पद्धति को समाप्त कर उसके स्थान पर संयुक्त निर्वाचन पद्धति अपनाई जाए, जिसमे अल्प्शंख्यक वर्ग के हितो को भी सुनिश्चित किया जाए इस रिपोर्ट के व्यस्क मताधिकार की बात की गए |
- महिलओ के लिए समान अधिकार तथा संगठन बनाने की स्व्तंत्रता एवं धर्म का हर प्रकार के राज्य से पृथककरण की भी चर्चा की गई थी |
- नेहरू रिपोर्ट में कहा गया है की अगर एक वर्ष तक डोमिनियन स्टेट का दर्जा नहीं दिया गया तोह इस सीमा के पश्चात पूर्ण स्वराज की बात करने के लिए कांग्रेस स्वतंत्र होगी |
नेहरू रिपोर्ट असफलता :-
संयुक्त निर्वाचक मंडल एवं कुछ अन्य विषयो पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद था परन्तु इस समय नेहरू समिति पर हिन्दू महासभा तथा सिख लीग का दबाव था जो मुस्लिम लीग को रियायत देने के लिए तैयार नहीं थी इसके कारण जिन्ना की मानगो पर कोई सहमति नहीं बन पाई ,परिणाम स्वरूप मुस्लिम लीग ने सर्वदलीय सम्मेलन से अपने को बाहर कर लिया |
1929 ई का लाहौर अधिवेशन एवं पूर्ण स्वराज :-
- कांग्रेस पर युवा वर्ग का प्रभाव बढ़ रहा था जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बॉस ने पूर्ण स्वाधिनता के लक्ष्यों को स्वीकार करवाने के लिए कांग्रेस के भीतर ही एक दबाव समूह के रूप में ‘इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लीग ‘ की स्थापना की :- वे डोमिनियन स्टेट्स की जगह पूर्ण स्वराज की मांग का पक्षधर थे दूसरी तरफ गाँधी भी 6 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद सक्रिय राजनीती में लौट आये |
- 1929 ई में गाँधी जी की मौजूदगी में जवाहरलाल नेहरू को लाहौर अधिवेशन का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया लाहौर अधिवेशन में अनेक मत्वपूर्ण निर्णय लिए गये |
- 1. इसमें पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया |
- 2. सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया गया
3. 31 दिसंबर 1929 को मध्य रात्रि में रवि नदी के तट पर तिरंगा झंडा फहराया गया तथा 26 जनवरी 1930 में सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गयाइसी कारण आगे चलकर हमारे संविधान निर्माताओं ने यहाँ निर्णय लिया की वो २६ जनवरी को ही भारत का संविधान लागु करेंगे,भारत का संविधान तो २६ नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार होगया था परन्तु इसी वजह से संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागु किया गया था | - एक तरह से अगर देखा जाये तोह लाहौर प्रस्ताव एवं पूर्ण स्वराज की घोषणा एक आंदोलन से कम नहीं थी क्योकि भारत एक नए लक्ष्य की बढ़ गया था | नेहरू रिपोर्ट को भारत का पहला संविधान माना जाता है परन्तु नेहरू रिपोर्ट साम्प्रदायिकता के प्रभाव के कारन सफल नहीं हो पाई